सादगी और मासूमियत का दूसरा नाम है “बचपन”। मासूमियत भोलापन छोटी-छोटी बातों पर खुश हो जाना बच्चों की खासियत हैै। लाभ हानि के गुणा-भाग से परे अपने लिए छोटी-छोटी खुशियों के बहाने ढूंढना, ना किसी बात का डर ना ही कोई चिंता। दुनियादारी से बेखबर होती है बच्चों की दुनिया।… लेकिन समय कहां रुकता ह, उम्र का यह खूबसूरत दौर भी बीत जाता है। इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता है करियर और जिम्मेदारियों की अपेक्षाओं के दबाव के चलते अकसर खुश रहना भूल जाता है कहां गई वह आजादी और बेफिक्री, हर बात पर हंसना खिलखिलाना, रोना-मचलना, रूठना और पल भर में मान जाना…। सच, कितनी सहज होती है बच्चों की दुनिया। जहां वह अपनी मर्जी के मालिक होते हैं। क्या हम भी उनकी तरह सहज और खुश नहीं रह सकते? अपने आसपास हंसते-खिलखिलाते बच्चों को देखकर बड़ों के मन में भी अक्सर यह सवाल उठता है, जिसका जवाब ढूंढना वाकई बहुत मुश्किल है क्योंकि समय के साथ आने वाला सयानापन बच्चों को दुनियादारी की वह सारी चालाकियां सिखा देता है, जो आज के दौर में जीने के लिए जरूरी है। इससे इंसान को कामयाबी तो मिल जाती है पर मन का सुकून खो जाता हैै। पैसा और शोहरत के पीछे भागते-भागते जब हौसले पस्त हो जाते हैं तो उसकी उनींदी आंखों में अक्सर बचपन के ही सपने दिखाई देते हैं। कभी वह खुले आसमान में पतंग उड़ाता है तो कभी शोर मचाते हुए पार्क में दौड़ लगा रहा होता है…लेकिन पल भर में भी उसकी नींद खुल जाती है और एक भ्रम भी टूट जाता है।….. हम जीवन के किसी भी मुकाम पर पहुंच जाएं हमें अपने अंदर का बच्चे को जिंदा रखना चाहिए। क्योंकि समय के साथ जीवन और जटिल हो जाएगा, जिसमें हमारा चुनाव होना चाहिए है कि हमे जीवन को किस तरह जीना है खुशनुमा बच्चे की तरह या एक मशीन की तरह…। हमें बच्चों से हमेशा प्रेरणा मिलती हैं तभी तो जिंदगी की आपाधापी में उनसे बहुत कुछ सीखने को जी करता है। और इसलिए बच्चों को देखकर अक्सर बचपन में लौट जाने का जी करता है।
By Shikha Dixit
B.ed 4th Semester